-सपूतों के पग पालने में ही नजर आ गए, अभी इतना-कुछ कर दिखाया, तो आगे क्या-क्या गुल खिलाएंगे
-क्या जिंदादिली दिखाई है, इन्हें तो सस्पेंशन की बजाय कोई बड़ा इनाम मिलना चाहिए
-जवां खून है, क्यों नहीं दादागिरी करते, आईएएस-आईपीएस का तमगा जो सरकार ने दिया है
-आखिर पद का रूतबा झाड़ने के लिए ही तो आईएएस-आईपीएस बने, वरना कौन पूछता
-ऐसे अफसरों को जनता से जुड़े महकमों में लगाने की बजाय ’’बर्फखाने’’ में बिठा देना चाहिए
प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
राजस्थान वीरों की धरती है। यहां के खून में जोश दौड़ता है। यह अलग बात है कि महाराणा प्रताप और सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने मुगलों से मुकाबला करने में अपनी ताकत का इस्तेमाल किया था। लेकिन इन भोले-भाले या यूं कहे कल-परसों पैदा हुए या यूं कहिए कुछ साल पहले ही देश की सबसे बड़ी सेवा आईएएस और आईपीएस में आए अजमेर की धरती पर नौकरी करने वाले दो जवां अफसरों का खून उबाल क्यों नहीं मारता। खून ने उछल-उछल कर उबाल खाया। जयपुर रोड हाईवे पर किशनगढ़ के पास एक होटल के गरीब और कमजोर तबके के कर्मचारियों पर पद की "मदहोशी" में हाथ आजमा दिए। लोगों को तो इन दोनों ’’काबिल’’ अफसरों से जलन है, जो बेचारों को यूं ही बदनाम कर रहे हैं। अजमेर के एडिशनल एसपी सुशील विश्नोई को आईपीएस और अजमेर विकास प्राधिकरण के आयुक्त गिरिधर को आईएएस बने हुए महज चार-पांच साल हुए हैं। दोनों एक ही बैच 2019 के चयनित हैं। विश्नोई को नए बने जिले गंगापुर सिटी का विशेषाधिकारी बनाया गया है, जो नया जिला मूर्तरूप में आने के बाद पुलिस अधीक्षक पद होगा।
अब भाई, जो पुलिसिया डिपार्टमेंट का इतना बड़ा अफसर है, वो अगर अपने पद का रूतबा नहीं झाड़ेगा, तो क्या करेगा। इसी प्रकार आईएएस अधिकारी गिरिधर की बदमिजाजी और अक्खड़पन भी इसी बहाने सामने आ गया। कुछ पार्षद बता रहे थे, दो-तीन दिन पहले वे गिरिधर से किसी काम के सिलसिले में मिलने के लिए अजमेर विकास प्राधिकरण कार्यालय गए थे और परिचय में पार्षद बताया था। तो जनाब गिरिधर का कितना ’’संजीदा’’ और ’’आदरभाव’’ वाला जवाब था, ’आप लोग पार्षद हो तो मैं क्या करूं।’ अब आप खुद ही अंदाजा लगा लीजिए, जिस आईएएस अधिकारी को जनता और जनप्रतिनिधियों से बात करने की तमीज तक नहीं है, वह आगे चलकर क्या करता, क्या गुल खिलाता। वैसे कुछ वर्षों से नए अफसरों की जो खेप आ रही है, वह बदमिजाज, बदतमीज और घमंडी कुछ ज्यादा ही दिखाई देती है। जनता, जनप्रतिनिधियों और अपने मातहत कार्मिकों को तो तुच्छ के अलावा कुछ भी नहीं समझते हैं। ऐसे एक-दो नहीं, कई अफसरों के उदाहरण हैं।
बहरहाल, मारपीट के मामले को गंभीरता से लेकर प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने विश्नोई और गिरिधर को फिलहाल ’’नापते’’ हुए सस्पेंड कर दिया है। वैसे सरकार आईएएस और आईपीएस अफसरों को बहुत कम नापती है, किंतु इस साल नवंबर-दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए फूंक-फूंक कर कदम रख रही कांग्रेस सरकार ने दोनों को बिना देरी किए नापने में ही भलाई समझी। इधर, अजमेर रेंज की आईजी पुलिस लता मनोज कुमार ने गेगल थाने के तीन पुलिस कर्मियों को भी सस्पेंड कर दिया है।
अब इस मामले में शुरूआती दौर में ढिलाई बरतने पर अजमेर के पुलिस अधीक्षक चूनाराम जाट पर भी गाज गिरने की संभावना दिखाई दे रही है। सरकार तो सरकार है, चाहे जो कार्यवाही करे या कदम उठाए। देखने, सोचने और करने का काम उसका है। लेकिन इतना जरूर है कि ऐसे बदमिजाज, अक्खड़, जनता और जनप्रतिनिधियों की कद्र नहीं करने वाले अफसरों को फील्ड पोस्टिंग यानी सीधे तौर पर जनता से जुड़े विभागों में तो बिल्कुल भी तैनात नहीं करना चाहिए। ऐसे अफसरों को तो ताउम्र ’’बर्फखानों’’ में ही रखना चाहिए। सरकार में ऐसे बर्फखानेनुमा विभाग बहुत सारे हैं, जहां चाहे कितना ही बड़ा अफसर क्यों ना हो, बाबूगिरी के अलावा कुछ भी काम नहीं कर सकता है। फिलहाल, यह मामला केवल अजमेर ही नहीं, पूरे राजस्थान में गर्माया हुआ है। अब आगे क्या होता, देखते रहिए, इंतजार कीजिए।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक (प्रेम आनंदकर) के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति AYN NEWS उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं लेखक द्वारा उपलब्ध करवाई गई ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना, तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार AYN NEWS के नहीं हैं तथा AYN NEWS उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।
No comments:
Post a Comment