Wednesday, February 26, 2025

संभवतः यह राजस्थान ही नहीं, देश के संसदीय इतिहास में पहला ऐसा दुर्योग, विपक्ष का सदन में ऐसा आचरण (दो)

राजस्थान विधानसभा : सदन और आसन की गरिमा-मर्यादा तार-तार

गतिरोध बनाए रखना जनता, सरकार, विपक्ष और सदन के हित में नहीं



प्रेम आनन्दकर, अजमेर।

8302612247

संसदीय परंपरा और लोकतंत्र में लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा में मुद्दों को लेकर बहस होना, सहमत-असहमत होना, सरकार की कार्यप्रणाली पर संतुष्ट-असंतुष्ट होना, सरकार का विरोध करना-सरकार के साथ खड़े रहना, यह सब होता रहा है, होता रहना चाहिए और होता रहेगा। लेकिन किसी मुद्दे को लेकर कई दिन तक गतिरोध बनाए रखना ना देश-प्रदेश की जनता, ना सरकार, ना विपक्ष और ना ही सदन के हित में होता है। भले ही ताजा प्रकरण में राजस्थान विधानसभा में गतिरोध सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री अविनाश गहलोत द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करने से उपजा हो और उसके बाद जिस तरह विपक्षी दल कांग्रेस के सदस्यों ने सदन में आचरण किया, दोनों ही स्थितियों को किसी भी सूरत में लोकतंत्र, जनता-जनार्दन के लिए बिल्कुल भी जायज और सही नहीं ठहराया जा सकता है। मुद्दा दरअसल, गहलोत की टिप्पणी को लेकर उनके माफी मांगने को लेकर था, लेकिन अपनी मांग को लेकर जिस तरह विपक्षी दल कांग्रेस के विधायक हाथ लहराते हुए वेल में आ गए और फिर डायस तक पहुंच गए, उसे भी कतई जायज नहीं ठहराया जा सकता है। विधानसभा अध्यक्ष का पद संवैधानिक होता है और सदन की अपनी गरिमा होती है। एक गलती गहलोत ने की, तो उससे भी बड़ी दूसरी गलती विपक्षी दल ने की। चलिए, कोई बात नहीं, गतिरोध खत्म करने के लिए समझौता वार्ता हुई। इसमें यह तय नहीं हुआ था कि पहले कौन माफी मांगे। विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कांग्रेस के छह विधायकों को निलंबित करने के बावजूद समझौते के आधार पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व लक्ष्मणगढ़ के कांग्रेस विधायक गोविंदसिंह डोटासरा को सदन में आकर अपनी बात कहने की विशेष अनुमति दी। डोटासरा ने अपनी बात को कही, लेकिन वे इस बात पर अड़ गए थे कि पहले गहलोत माफी मांगें। आसन की ओर से यह कहा गया कि पहले आसन और अध्यक्ष का अपमान करने तथा डायस तक पहुंचने के लिए डोटासरा माफी मांगें, फिर गहलोत से भी माफी मांगने के लिए कहेंगे, लेकिन डोटासरा अड़े रहे और बात बिगड़ गई। इसमें भी कोई बात नहीं, किंतु डोटासरा ने सदन के बाहर प्रिंट व इलैक्ट्रॉनिक चैनलों से बात करते हुए विधानसभा अध्यक्ष देवनानी के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करना शुरू कर दिया। विधानसभा अध्यक्ष का पद संवैधानिक होने के नाते ही इस पद पर आसीन व्यक्ति बिना किसी भेदभाव और राजनीति के सदन का संचालन करते हैं, जो देवनानी कर रहे हैं। चूंकि देवनानी अजमेर उत्तर से लगातार पांचवीं बार जीतकर विधानसभा में पहुंचे हैं, तो उन्हें संसदीय मर्यादाओं और परंपराओं का अच्छी तरह ज्ञान है। प्रशासनिक और सदन का अनुभव होने के कारण ही वे सदन की मर्यादा और गरिमा बनाए रखने के लिए संकल्पबद्ध भी हैं। वैसे राजनीतिक रूप से एक-दूसरे की छिछालेदारी करना वर्तमान में नेताओं का शगल बन गया है। फिर भी विधानसभा अध्यक्ष का पद मर्यादा और गरिमा वाला होता है, इसलिए पद का सम्मान तो सभी को करना चाहिए। सदन चलाना अध्यक्ष का अधिकार क्षेत्र है, किंतु यदि कोई अपने हिसाब से सदन चलवाना चाहे, तो यह नामुमकिन है। ऐसा नहीं है कि देवनानी गलत बातों पर केवल विपक्ष को ही टोकते हैं, वे समय-समय पर मंत्रियों को भी टोकते रहते हैं। जब वे ऐसा करते हैं, तो उन पर अनर्गल आरोप लगाना और विधानसभा अध्यक्ष व आसन की मर्यादा को तार-तार करना कहां तक उचित-अनुचित है। यह सवाल आप सभी के बीच छोड़ रहा हूं।

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