Thursday, February 27, 2025

संभवतः यह राजस्थान ही नहीं, देश के संसदीय इतिहास में पहला ऐसा दुर्योग, विपक्ष का सदन में ऐसा आचरण (चार)

देवनानी को अपशब्द कहने के पीछे यह है असली सच?

क्या डोटासरा ने गहलोत की आड़ में देवनानी से राजनीतिक अदावत निकाली है?

बदतमीजी के पीछे की कहानी का खुलासा करता यह ब्लॉग



प्रेम आनन्दकर, अजमेर।

8302612247

बात केवल सदन में विधायी कार्य या संसदीय परंपराओं में उतार-चढ़ाव, खींचतान की होती तो कोई दिक्कत नहीं थी। चूंकि राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष वासुदेव देवनानी अजमेर उत्तर से लगातार पांचवीं बार जीते हैं, एक बार शिक्षा राज्यमंत्री और दूसरी बार शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रहे हैं, राजनीति में आने से पहले उदयपुर में एक पॉलिटेक्निक कॉलेज में प्राचार्य रहे हैं, इसलिए उन्हें शासन-प्रशासन चलाने का खासा अनुभव है। लगातार पांच बार से विधायी कार्य और विधानसभा से जुड़े हैं, तो जाहिर है उन्हें विधानसभा चलाने का अनुभव भी अच्छा-खासा है। बात बेजा टिप्पणी को लेकर होती, तो इसमें कोई हर्ज नहीं था। अब सवाल यह उठता है कि सदन के अंदर और बाहर सीकर के लक्ष्मणगढ़ से विधायक व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंदसिंह डोटासरा नें देवनानी के बारे में भद्दे शब्दों का इस्तेमाल क्यों किया? क्या डोटासरा ने सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री अविनाश गहलोत द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी के बारे में की गई टिप्पणी की आड़ लेकर देवनानी को निशाना बनाया? क्या डोटासरा बहुत पहले से देवनानी से राजनीतिक अदावत पाले हुए हैं? इन सब सवालों के जवाब इस ब्लॉग में मिल जाएंगे। आपको याद होगा कि पूर्ववर्ती कांग्रेस शासनकाल के दौरान द्वितीय श्रेणी शिक्षक भर्ती परीक्षा, पुलिस सब इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा और आरएएस भर्ती परीक्षा में हुए पेपर लीक और धांललियों को लेकर तब विपक्षी दल भाजपा के बतौर विधायक देवनानी ने कांग्रेस सरकार को जमकर लपेटा था। उस वक्त यह भी आरोप लगे थे कि आरएएस भर्ती में डोटासरा के अनेक परिजन और रिश्तेदारों का चयन हुआ था। तो अब आप समझ गए होंगे डोटासरा ने देवनानी के बारे में निहायत ही भद्दे और अपशब्दों का उपयोग क्यों और किसलिए किया और इसके पीछे उनकी मंशा क्या थी। जिन शब्दों का इस्तेमाल डोटासरा ने गरिमापूर्ण और संवैधानिक पद पर बैठे देवनानी के लिए किया, वैसे शब्द तो मंत्री, विधायक, सांसद, पार्षद, नगर निगम मेयर, नगर परिषद सभापति, नगर पालिका अध्यक्ष, वार्ड पंच, सरपंच, पंचायत समिति सदस्य, प्रधान, जिला परिषद सदस्य, जिला प्रमुख तो बहुत दूर, किसी भी पार्टी के साधारण से साधारण कार्यकर्ता के लिए भी उपयोग में नहीं लिए जाते हैं। ऐसे घटिया शब्दों का इस्तेमाल तो अपने परिवार के किसी भी सदस्य के लिए भी नहीं करते हैं। एक कहावत है-इंसान की बोली-भाषा बता देती है कि परवरिश कैसी है। डोटासरा जी आप अच्छे पढ़े-लिखे हो सकते हैं, इसमें संदेह भी नहीं है, लेकिन जिस तरह की भाषा का आपने इस्तेमाल किया है, वह एक अच्छे पढ़े-लिखे व्यक्ति या इतने बड़े शीर्ष पद पर बैठे नेता की निशानी नहीं है। जब आप ही संयमित, शालीन और शिष्ट भाषा का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं, तो फिर अपनी या दूसरी पार्टी के नेताओं, कार्यकर्ताओं, सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों, परिजन से कैसे शिष्टता की अपेक्षा कर सकते हैं। सोचिए, विचारिए, मंथन-मनन कीजिए।

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