Monday, August 19, 2024

विश्व संस्कृत दिवस आज, जानिए क्यों ख़ास है यह प्राचीन भाषा - सोनम विल्सन



Written By Sonam Wilson (B.Ed/MA in Sanskrit)



आज 19 अगस्त 2024 को सम्पूर्ण विश्व में विश्व संस्कृत दिवस मनाया जा रहा है क्योकि आज (19 अगस्त 2024) श्रावण पूर्णिमा भी है। यह हिंदू कैलेंडर में श्रावण महीने के पूर्णिमा दिवस (पूर्णिमा) को मनाया जाता है। 



पहली बार कब मनाया गया था विश्व संस्कृत दिवस ? 


केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा राज्य और केंद्र सरकारों को अधिसूचना जारी करने के बाद वर्ष 1969 में पहली बार विश्व संस्कृत दिवस मनाया गया था। 

विश्व संस्कृत दिवस को मानाने की शुरुआत 1969 में संस्कृत की वैश्विक भूमिका और सांस्कृतिक धरोहर को सम्मानित करने के उद्देश्य से की गई थी। आदिकाल से चली आ रही भारतीय भाषा संस्कृत अपनी व्यापक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। 

यह दिन संस्कृत भाषा को सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व देने के लिए बेहद खास है। यह दिन संस्कृत भाषा की समृद्धि और महत्व को मान्यता देने के लिए समर्पित है। 


विश्व की सबसे पुराणी भाषाओं में से एक है संस्कृत भाषा 

संस्कृत भाषा को विश्व की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक माना जाता है। यह एक प्राचीन इंडो-आर्यन भाषा है जिसमें सबसे प्राचीन दस्तावेज़, वेद, वैदिक संस्कृत में हैं। वैदिक काल में संस्कृत एक अखिल भारतीय भाषा हुआ करती थी और देश में अधिकांश भाषाओं का जन्म संस्कृत से हुआ है। 


विश्व संस्कृत दिवस को मानाने का उद्देश्य ?

विश्व संस्कृत दिवस को मानाने का मुख्य उद्देश्य संस्कृत भाषा की महत्ता और उपयोगिता को उजागर करना है व इसके साथ ही यह दिन संस्कृत भाषा की संवर्धन (promotion) की दिशा में जागरूकता फैलाने का कार्य भी करता है।


संस्कृत भाषा की उत्पत्ति ?

संस्कृत भाषा की उत्पत्ति प्राचीन काल में हुई थी, जिसे वैदिक संस्कृत के रूप में भी जाना जाता है, यह भाषा वेदों, उपनिषदों और पुरानी धार्मिक ग्रंथों की भाषा रही है, संस्कृत की परंपरा और साहित्यिक धरोहर हजारों वर्षों पुरानी है, जो भारतीय सभ्यता का अभिन्न हिस्सा है।



ग्रीक और लैटिन भाषा संस्कृत से संबंधित 

वर्ष 1786 में अंग्रेज़ी भाषाविद् सर विलियम जोन्स ने अपनी पुस्तक 'द संस्कृत लैंग्वेज' में बताया है कि ग्रीक और लैटिन भाषा संस्कृत से संबंधित थी। 


संस्कृत समाचार पत्र 'सुधर्म'  

विश्व का एकमात्र संस्कृत समाचार पत्र 'सुधर्म' है। यह समाचार पत्र 1970 से कर्नाटक के मैसूर से प्रकाशित हो रहा है और ऑनलाइन भी उपलब्ध है।

संस्कृत भाषा को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा कैसे दिया जा सकता है?

संस्कृत भाषा को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के लिए शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में प्रयासों को बढ़ाना आवश्यक है, जैसे की अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों, कार्यशालाओं और भाषाई कार्यक्रमों के माध्यम से संस्कृत को बढ़ावा दिया जा सकता है, इसके अलावा संस्कृत के डिजिटल संसाधनों और ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के विकास से भी इसकी वैश्विक पहुंच बढ़ाई जा सकती है।


केंद्र सरकार द्वारा संस्कृत को बढ़ावा

नई शिक्षा नीति (New Education Policy NEP) ने संस्कृत भाषा को "मुख्यधारा" में लाने के लिये एक महत्त्वाकांक्षी मार्ग निर्धारित किया है। इसके तहत स्कूलों में संस्कृत के अध्ययन की पेशकश करना है, जिसमें त्रि-भाषा सूत्र के साथ-साथ उच्च शिक्षा में एक भाषा विकल्प भी शामिल है। संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिये एक नोडल प्राधिकरण के रूप में दिल्ली में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान की स्थापना की गई है।

संस्कृत भाषा के लिये राष्ट्रपति पुरस्कार प्रतिवर्ष 16 वरिष्ठ विद्वानों और 5 युवा विद्वानों को प्रदान किया जाता है।




भारत सरकार ने संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए कई कदम उठाए हैं

भारत सरकार ने संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए कई कदम उठाए हैं। संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम नीचे दिए गए हैं:


आदर्श संस्कृत महाविद्यालयों/शोध संस्थानों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।

संस्कृत पाठशाला से महाविद्यालय स्तर तक के विद्यार्थियों को योग्यता छात्रवृत्ति प्रदान करना।

विभिन्न शोध परियोजनाओं/कार्यक्रमों के लिए गैर सरकारी संगठनों/संस्कृत के उच्च शिक्षण संस्थानों को वित्तीय सहायता।

शास्त्र चूड़ामणि योजना के अंतर्गत सेवानिवृत्त प्रख्यात संस्कृत विद्वानों को अध्यापन के लिए नियुक्त किया गया है। 

संस्कृत को अनौपचारिक संस्कृत शिक्षा (एनएफएसई) कार्यक्रम के माध्यम से भी पढ़ाया जाता है, जिसके तहत भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, आयुर्वेद संस्थानों, आधुनिक महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में अनौपचारिक संस्कृत शिक्षण केंद्र स्थापित किए जाते हैं।

संस्कृत भाषा के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार प्रतिवर्ष 16 वरिष्ठ विद्वानों और 5 युवा विद्वानों को प्रदान किए जाते हैं। 

दुर्लभ संस्कृत पुस्तकों के प्रकाशन एवं पुनर्मुद्रण के लिए वित्तीय सहायता।

संस्कृत के विकास को बनाए रखने के लिए अठारह परियोजनाओं वाली अष्टादशियों को क्रियान्वित किया गया है।

इसके अलावा, लोगों को संस्कृत भाषा से परिचित कराने के लिए तीन संस्कृत संस्थानों अर्थात राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (आरएसकेएस), दिल्ली, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (एसएलबीएसआरएसवी), नई दिल्ली और राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (आरएसवी), तिरुपति जो केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित हैं, को सलाह दी गई है कि वे प्रत्येक दो गांवों को गोद लें और गांव में संस्कृत पढ़ाएं ताकि गांव का हर व्यक्ति संस्कृत भाषा में बातचीत करने में सक्षम हो सके। राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान ने पहले ही 5 गांवों को गोद ले लिया है अर्थात i) जुबतारा (मोहनपुर), त्रिपुरा, ii) मसोट (प्रागपुर), हिमाचल प्रदेश, iii) चिट्टेबैल (शिमोगा), कर्नाटक, iv) अदात (पुजक्कल), केरल और v) बरई (हुजूर), मध्य प्रदेश। 

यह जानकारी केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने आज राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में दी।

Source/स्रोत
उक्त समस्त जानकारी इन्टरनेट से ली गई है। 
Sanskrit Day Image Credit - Internet 

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