अधिवक्ता परिषद राजस्थान चित्तौड़ प्रांत द्वारा आज राष्ट्रपति व मुख्य न्यायाधपति सर्वोच्च न्यायालय को ज़िला कलेक्टर अजमेर के माध्यम से समान लिंग विवाह को क़ानूनी मान्यता देने के विरोध मे ज्ञापन दिया गया।
अधिवक्ता परिषद् प्रांत अध्यक्ष बसंत विजयवर्गीय ने बताया कि विवाह सभी धर्मों में सबसे पवित्र संस्कार है जो अनादि काल से स्थापित है। इसका उद्देश्य मनुष्य की सबसे बुनियादी और प्राकृतिक आवश्यकता को पूरा करना है जो केवल यौन सुख के लिए ही नहीं बल्कि संतानोत्पत्ति के लिए भी सीमित है। एक वैवाहिक संबंध भावनात्मक निर्वात को भी पूरा करता है और एकजुटता और सामाजिक सुरक्षा की भावना देता है। न्यायालय ने समलैंगिक संबंधों को पहले ही अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है, लेकिन उन्हें विवाह का दर्जा देना विवाह, परिवार के संपूर्ण न्यायशास्त्र की एक अत्यंत अदूरदर्शी दृष्टि को दर्शाता है।
प्रान्त महामंत्री उमरदान लखावत ने कहा कि स्वास्थ्य के अधिकार पर 'पसंद के अधिकार' को तरजीह देने से न केवल 'यौन संचारित रोग' फैलने संभावना बढ़ेगी बल्कि नागरिकों के 'जीवन के अधिकार' को भी गंभीर रूप से ख़तरे में डाला जा सकेगा, जो संविधान में सबसे बुनियादी है।
यह गोद लेने से लेकर उत्तराधिकार तक के पारिवारिक कानून के पूरे दायरे को भी बदल देगा,समाज और राष्ट्र में विचार-विमर्श किए बिना भारतीय जनता पर इसे लागू करने का मानदंड नहीं हो सकता है।
अधिवक्ता परिषद् के राष्ट्रीय कार्यकारणी सदस्य जगदीश सिंह राणा ने कहा कि जिस तरह से संवैधानिक न्यायालय को 'समान लिंग जोड़ों के बीच विवाह को कानूनी मान्यता देने' के मुद्दे में फंसाया जा रहा है, उससे उत्पन्न एक गंभीर स्थिति . क़ानून के अभाव में या विशेष रूप से कानून निर्माताओं और सामान्य रूप से प्रभावित समाज द्वारा किसी भी विचार-विमर्श के अभाव में, अदालत को न्यायनिर्णय देने के लिए कहा जा रहा है। जिस तरह से इस मुद्दे पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा फैसला सुनाने की मांग की जा रही है वह पेचीदा और बल्कि हैरान करने वाला है। इस देश में यहां समझी और प्रचलित 'विवाह और परिवार' की संस्थाएं, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, इस मामले से गंभीर रूप से प्रभावित होंगी।
प्रांत कोषाध्यक्ष जय प्रकाश शर्मा शर्मा ने बताया कि यदि समान लिंग विवाह को वैध कर दिया जाता है तो इसका पूरे समाज पर दीर्घकालिक कुप्रभाव पड़ेगा, समान यौन संबंध और दूसरी ओर यह किशोरों और युवाओं को आसान पहुंच के कारण इस तरह की गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करेगा, चिकित्सा साक्ष्य के अनुसार, यह साबित हो गया है कि समलैंगिकों को एचआईवी संक्रमण का खतरा अधिक होता है और कम उम्र में किशोरों के लिए समलैंगिक गतिविधियों के संपर्क में आने से उनके शरीर पर अत्यधिक नकारात्मक शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। ऐसे किशोर अगर कभी विपरीत लिंग के व्यक्ति के साथ विवाह कर लेते हैं तो वे कभी भी सामान्य वैवाहिक जीवन नहीं जी पाते हैं। यह इतनी कम उम्र में अपने बच्चों को इस तरह की गतिविधियों का प्रयोग करने से बचाने के लिए माता-पिता के बीच भी दहशत पैदा करेगा।
ज्ञापन देने वालो मे अधिवक्ता अशोक माथुर, शशि प्रकाश इन्दौरिया,भवानी सिंह,प्रशांत यादव, सीमांत भारद्वाज, रचित कच्छावा, शैलेंद्र सिंह, लक्ष्मीकान्त शर्मा, राकेश सिंहल, शैलेंद्र सिंह, प्रदीप कुमार,दीपक शर्मा, रंजन शर्मा, निर्मल सिंह भाटी, भूपेन्द्र सिंह चौहान आदि उपस्थित रहे।
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