-ना सरकार झुकने को तैयार है, ना डॉक्टर
-सरकार द्वारा जनता को फ्री चिकित्सा देने का क्या फायदा
-डॉक्टरों को धरती के भगवान की उपमा देने का क्या मतलब
प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
राजस्थान में राइट टू हेल्थ बिल (स्वास्थ्य का अधिकार) को लेकर सरकार और डॉक्टरों के बीच मूंछ की लड़ाई चल रही है और इसमें बेचारी जनता बुरी तरह पिस रही है।
सरकार हठधर्मी का रुख अपना कर प्राइवेट अस्पतालों और सरकारी डॉक्टरों को "नापने" पर तुली हुई है, तो डॉक्टर भी आरपार की लड़ाई लड़ कर सरकार को "ठिकाने" लगाने की ठाने हुए हैं। अब इन दोनों "हाथियों" की लड़ाई में बेचारी जनता कहां जाए और किससे अपनी पीड़ा कहे। ना सरकार जनता का दर्द समझ रही है और ना ही डॉक्टर। मेडिकल हड़ताल के चलते समुचित इलाज के अभाव में गंभीर बीमारियों से ग्रसित ना जाने कितने मरीज दम चुके होंगे।
सरकार ने भले ही चिरंजीवी योजना में मुफ्त इलाज की राशि पांच लाख से बढ़ा कर दस लाख रुपए कर दी है, लेकिन इन हालात में लोगों को इस योजना का लाभ कैसे मिलेगा, यह आज सबसे बड़ा सवाल हर आम-अवाम के जेहन में कौंध रहा है। यही नहीं, जब लोगों को समय पर इलाज नहीं मिलने के कारण तड़पना पड़ रहा है तो डॉक्टरों के धरती का भगवान कहलाने-मानने का क्या मतलब। सरकार डॉक्टरों को कसना चाहती है और डॉक्टर सरकार को आइना दिखाना चाहते हैं। मतलब, दोनों में से कोई भी अपनी मूंछ नीचे करने को तैयार नहीं हैं।
सरकार डॉक्टरों के खिलाफ जो कदम उठाने जा रही है, उससे जनता को कोई फायदा नहीं होने वाला है, लेकिन इतना जरूर है कि जितने ज्यादा सख्त कदम उठाए जाएंगे, उतने हालात बिगड़ेंगे। इसलिए बेहतर यही है कि दो कदम सरकार बढ़ाए और दो कदम डॉक्टर। कुछ नफा-नुकसान को देखे बिना दोनों पक्ष सकारात्मक सोच के साथ बातचीत करें। अड़ने में ना सरकार को, ना ही डॉक्टरों को फायदा होगा।केवल जनता मरती-तड़पती रहेगी।
अब और हालत बिगड़ें, इसके पहले ही दोनों पक्षों को जनता के हित में बातचीत कर लेनी चाहिए, ताकि राज्य में चिकित्सा व्यवस्था बहाल हो सके। मुख्यमंत्री जी, राजनीतिक सभाएं तो आप कुछ दिन बाद भी कर सकते हो। आप ना चिकित्सा मंत्री और ना ही अफसरों के भरोसे रहिए, बल्कि खुद डॉक्टरों से बात कीजिए। कुछ सरकार की बात डॉक्टरों से मनवा लीजिए और कुछ डॉक्टरों की बात आप मान लीजिए। बाकी आपकी मर्जी। जनता तो वैसे ही भगवान भरोसे रहती रही है और आगे भी रह लेगी।
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